हिंदी अकादेमी के इस सत्र में "प्रदूषित सम्माज में पुर्होहितो की भूमिका" विषय पर मनन चिंतन किया गया। उपस्तित सदस्यों को व्यक्तिगत स्तर पर अपने लिए एक "कार्य केन्द्रित मिशन जीवन " (praxis oriented missionary life ) के बारे में सोचने के लिए आमंत्रित किया गया। इस विषय पर जोर दिया गया की पुरोहितिक प्रशिशन को , समाज और समाजजिक विषयो के प्रति आलोचनात्मक , भविष्य सूचक एवं योजनाबद दृष्टिकोण अपनाने में मदद करना चाहिए।
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समाज के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण के फलस्वरूप ही पुरोहित बाईबल, विशेष रूप से सुसमाचार के सिधान्तों को संस्कृति में फलदायक रूप में प्रचार कर पायेगा । आज के समाज में जो परिस्तिती हे वह हमारे गुरु और प्रभु येसु ख्रिस्त की परिकल्पना के अनुसार नहीं हे। आज के समाज में हिंसा और अन्याय का समिश्रण हे । बर्रैकपुर के पूर्व अन्ग्लिकां बिशोप Dr. D.C. Gorai कहते की इसी समाज में कलीसिया के नेताओ को मिशन के बारे में स्वयं को और दुसरो को विश्वास दिलाना हे क्योंकि क्रिस्तियों का अस्तित्व का नीव मिशन हे बड़ी सोच और ऊँची आकांशा के लिए हर पुरोहित बुलाया गया हे। Thomas Menamparambil ,गुवाहाटी के पूर्व अर्च्बिशोप पुरोहितो को सअम्बोदित करते हुए कहते हे - यदि हमारा सोच छोटा होगा तो भाविष्य में कलीसिया ऊँची उड़न नहीं भर पायेगा।
सत्र के दौरान समाज के निम्नलिकित समस्याओं का उलेख हुआ -
आम आदमियों की समस्या
1. सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषय (Social and cultural Issues)
2. आर्थीक विषय (Economic Issues )
3. राजनैतिक विषय (Political Issues )
4. कुछ सोचनीय विषय (Issues of Grave Concern )
इस संदार्ब में पुर्होहितो को क्या भूमिका निभाना चिहिए? इसके उत्तर में निम्नलिकित सिदंतो पर विचार किया गया।
1. पुरोहितो को एसी समाज में गरीबो का साथ देना चाहिए।(Preferential Option for the poor )
2. उनके कार्य द्वारा लोग इश्वर के प्रति आकर्षित होना चाहिए। (Apologetic Dimension )
3. पुरोहितो को एक पैगम्बर का भूमिका निभाना चाहिए। (Prophetic Role )
4. पुरोहितो की उपस्तिति शक्शिपूर्ण होना चाहिए। (From Presence to witnessing presence )
पुरोहित का सही पहचान तभी उभर के आएगा जब वह संसार के दुःख और तकलीफों में अपना हाथ डालेंगा।
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MRS+C
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